कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 7 जुलाई 2011

बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम

बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
खि़ड़कियाँ हों हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम
आदमी को आदमी से दूर जिसने कर दिया
ऐसी साज़िश के लिये हर बद्दुआ लिखते हैं हम
जो बिछाई जा रही हैं ज़िन्दगी की राह में
उन सुरंगों से निकलता रास्ता लिखते हैं हम
आपने बाँटे हैं जो भी रौशनी के नाम पर
उन अँधेरों को कुचलता रास्ता लिखते हैं हम
ला सके सब को बराबर मंज़िलों की राह पर
हर क़दम पर एक ऐसा क़ाफ़िला लिखते हैं हम
------------
 
हम भी हुए दीवाने आखिर दीवानों की बस्ती में

कोई अपना ढूँढने निकला हमें बेगानों की बस्ती में

चेहरे पर एक चहरा लगाकर हर पल सौ सौ रंग भरे

हम खो बैठे अपनी हकीकत अफसानो की बस्ती में ||
-----------------------------
 
..क्या करूँ.

.मन बुद्धि और विवेक का संघर्ष जाने और
क्या-क्या दिखलाएगा..माटी का पुतला जाने कब तक थपेडों को सह पायेगा..कहने
को तो सभी अच्छा बोल लेते है पर विजेता तो वही है जो कर पाया है
--------------
 
स्वर्ण हूँ तो क्या हुआ तपना पडेगा, हार बनाना हो तो फ़िर गलना पडेगा ।
जिन्दगी तो हर घडी लेगी परीक्षा, जो न दे उस को यहाँ पिटना पडेगा ॥
---------------------
 
"सीडीयाँ उन के लिये बनी हैं, जिन्हे सिर्फ़ छत पर जाना है।
आसमाँ पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद बनाना है” ॥
-----------------------------
मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर
इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती।
मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती।
युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती।
ये सिलसिला यहीं चलता रहता..
फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा
" तुम हार कर भी मुस्कुराते हो! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का? "
तब मैंनें कहा
मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं..
तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा
एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा
 ----
आज एक बार फ़िर सुरज को उगता देखो
और चान्द को चान्दनी रात मे जागता देखो
क्या पता कल ये धरती
चान्द और सुरज हो ना हो
आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो
आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो
आज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो
बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो
आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो
आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो
क्या पता
कल हो ना हो .... 
 -----
"ज़िन्दगी की जंग में जाँबाज़ होना आ गया
मौत को तकिए के नीचे रख के सोना आ
गया
ज़िन्दगी तेरे मदरसे में यही सीखा हुनर
मोम के धागे में अंगारे
पिरोना आ गया
इस क़दर खुश था मेरी काग़ज़ की कश्ती देखकर
हाथ में जैसे
समन्दर के खिलौना आ गया
और तो होना था क्या इन मुश्किलों में दोस्तो!
पीठ
पर चट्टान जैसा बोझ ढोना आ गया
बाद मुद्दत के गया था आज मैं भाई के
घर
उसकी आँखें नम हुईं मुझको भी रोना आ गया
सिसकती रुत को महकता गुलाब कर
दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा
मैं इंतज़ार में हूँ तू कोई
सवाल तो कर
यकीन रख मैं तुझे लाजवाब कर दूँगा
हज़ार पर्दों में खुद को
छुपा के बैठ मगर
तुझे कभी न कभी बेनकाब कर दूँगा
मुझे यकीन है की महफ़िल
की रौशनी हूँ मैं
उन्हें ये खौफ के महफ़िल ख़राब कर दूँगा
मुझे गिलास के
अन्दर ही क़ैद रख वरना
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा
महाजनों से कहो
थोडा इंतज़ार करें
शराब खाने से आकर हिसाब कर दूँगा"
-
 
अपने
हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको।
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको।
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको।
बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें