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गुरुवार, 7 जुलाई 2011

कल थे,,आज नहीं हैं

जो कल थे,
वे आज नहीं हैं।
जो आज हैं,
वे कल नहीं होंगे।
होने, न होने का क्रम,
इसी तरह चलता रहेगा,
हम हैं, हम रहेंगे,
यह भ्रम भी सदा पलता रहेगा।
सत्य क्या है?
होना या न होना?
या दोनों ही सत्य हैं?
जो है, उसका होना सत्य है,
जो नहीं है, उसका न होना सत्य है।
मुझे लगता है कि
होना-न-होना एक ही सत्य के
दो आयाम हैं,
शेष सब समझ का फेर,
बुद्धि के व्यायाम हैं।
किन्तु न होने के बाद क्या होता है,
यह प्रश्न अनुत्तरित है।
प्रत्येक नया नचिकेता,
इस प्रश्न की खोज में लगा है।
सभी साधकों को इस प्रश्न ने ठगा है।
शायद यह प्रश्न, प्रश्न ही रहेगा।
यदि कुछ प्रश्न अनुत्तरित रहें
तो इसमें बुराई क्या है?
 
चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥  
 
हम अगर आप से मिल नही पाते..
ऐसा नही की आप हमें याद नही आते..
माना की सब रिश्ते निभाऐ नही जाते
मगर जो दोस्त दिल मे बस जाते है...

... वो कभी भुलाऐ नही जाते. 
 
कुछ ऐसी हमारी किस्मत हो, पीता भी रहूं और प्यास भी हो
मस्ती में बहकता दिल भी रहे और होश भरा उल्लास भी हो
मिट जाएं मेरी हस्ती के निशां, मौजूद भी लेकिन पूरा रहूं
मैं उसका नजारा देखा करूं, संसार भी हो संन्यास भी हो
जीवन का सफर यों बीते अगर, कुछ धूप भी हो, कुछ छांव भी हो
मिलता भी रहे चलने का मजा, मंजिल का सदा अहसास भी हो
पर्दे में छुपा हो लाख मगर, जलवा भी दिखाई देता रहे
इस आंख मिचौनी खेल में वो, कुछ दूर भी हो, कुछ पास भी हो
कुछ इश्के-खुदा में चुप भी रहूं, कुछ इश्के-बुतां में बात भी हो
धरती भी बसी आंखों में रहे, प्यारा ये खुला आकाश भी हो
हो चुप्पी मगर कुछ गाती हुई, संगीत हो मौन में डूबा हुआ
रोदन भी चले कुछ मुस्काता, कुछ अश्रु बहाता हास भी हो
सन्नाटा कभी तूफान सा हो, चुपचाप सी गुजरे आंधी कभी
मझधार भी हो साहिल की तरह, पतवार भी हो, विश्वास भी हो
मुमकिन हो अगर यह दुनिया में, जीने का मजा कुछ और ही हो
मौला भी रहे, बंदा भी रहे, गीता भी झरे और व्यास भी हो
कुछ ऐसी हमारी किस्मत हो, पीता भी रहूं और प्यास भी हो
मस्ती में बहकता दिल भी रहे और होश भरा उल्लास भी हो
मिट जाएं मेरी हस्ती के निशां, मौजूद भी लेकिन पूरा रहूं
मैं उसका नजारा देखा करूं, संसार भी हो संन्यास भी हो

कुछ अन्दर कि आवाज़ से लिखता रहता हूँ
एक खिलते फूल को बिखरते हुए देखा
बंद मुट्ठी से रेत को सरकते देखा
क्या सचमुच जी रहे है हम जिन्दगी
या सिर्फ वक़्त को गुजरते देखा ......

माना तू भी अजनबी मैं भी अजनबी इस में डरने की क्या बात है जरा मुस्कुरा तो दे
प्रेम मार्ग
प्रेम मार्ग मस्त रहने की भी कोई हद होती है ,सोचता हूँ,
कभी जीवन है धूप
कभी पीपल की छावं
कभी जीवन है झरना
कभी कौवे की कावं-कावं //
कभी निराशा की गली में
थकता है तन-मन
कभी आशा की रोड पर
थकते नहीं हैं पावं // 
मुझको आना पड़ा.
मन नहीं था मगर मुझको आना पड़ा
दिल वहीँ था मगर मुझको आना पड़ा
वो  घडी  दो   घडी   में   पिघल   जाएंगे
ये यकीं था मगर मुझको आना पड़ा
 
दर्द....
दिल में कुछ दर्द सा जगा शायद
उसने मांगी है फिर दुआ शायद
फिर घुली चांदनी में खुशबू सी
चाँद ने फिर उसे छुआ शायद
 
खिलखिलाता कौन है....

धडकनों  में  साज़  है  लेकिन  सजाता  कौन  है
प्यार  के  नगमे  बहुत  हैं  गुनगुनाता  कौन  है
इस कदर हम दब चुके हैं जिंदगी के बोझ से
होंठ अब खुलते कहाँ हैं, खिलखिलाता कौन है
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---- दिल को चुरा कर चले गए..
देखा   हमे  तो  नज़रे  झुका  कर  चले गए
तीर-ए-नज़र को दिल पे चला कर चले गए
हम  रह  गए   ठगे  से   खड़े   देखते   रहे
वो एक पल में दिल  को  चुरा कर चले गए
 
सिर्फ दो कदम दूर किनारा होगा, सोचो कितना खुबसूरत नजारा होगा. .बस दिल जो कहे उसे करना, फिर देखना..जिसे तुम सोचोगे वो तुम्हारा होगा.. 
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