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सोमवार, 4 जुलाई 2011

mother india

“दर्द होता रहा छटपटाते रहे , आईने॒से सदा चोट खाते रहे ,
 वो वतन बेचकर मुस्कुराते रहे ,हम वतन के लिए॒ सिर कटाते रहे”  
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क्या ये देश उन्ही का
है जो युद्धों में मर जाते है ?
अपना खून बहा कर टिका सरहद पर कर जाते है
?
ऐसा युद्ध वतन की खातिर सबको लड़ना पड़ता है .
संकट की घडियो में सबको सैनिक
बनना पड़ता है.
जो भी कौम वतन की खातिर लड़ने को तैयार नहीं .
उसकी संतानों
को आज़ादी जीने का अधिकार नहीं .
जेल भरे क्यों बेटे है हम आदमखोर दरिंदो से
,
आज़ादी का दिल घायल है जिनके गोरख धंधे से .
उन जहरीले नागो को दूध पिलाती
है दिल्ली ,
महमानों जैसे मटन बिरयानी खिलाती है दिल्ली .
पागल कुत्तो का
मरना बहुत जरुरी है . इन गद्दारों का फांसी चड़ना बहुत जरुरी है .
इन गद्दारों
का फांसी चड़ना बहुत जरुरी है .
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लोकतंत्र के सपने..........................
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एक हाथ में लोकतंत्र के सपने
दूसरे में बारूदी छर्रे!
बोलिए-हिप-हिप हुर्रे!
एक तरफ़ भूखे एहसास;
दूसरी तरफ कसाई!
जी हाँ, आपने भी
सही जगह बस्ती बसाई!
पेट में उगते हैं मौसम,
चूल्हे में सुबह-शाम!
बाकी जिंदगी तो होती है,
सड़कों पर तमाम |
आस्तीनों में पलते हैं दोस्त,
म्यानों में मिलते हैं संबंध!
मखमल के हैं संबोधन,
लेकिन टाट के हैं पैबंद!
पर, मेरे वैचारिक सहचरो!
वोट देते ही रटने लगो-
संविधानी मंत्र! वरना
फिर किस तरह बचेगा लोकतंत्र!
और अगर लोकतंत्र नहीं रहा तो
तुम्हारा पेट और चूल्हा कहाँ जाएगा?
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चार संत की भीड़ जुटाकर
हवन यज्ञं मत करना !
परसुराम-संग राम बुलाकर
खुद की रक्षा करना !
पहले – इतिहास तो देख लिए
अब वर्तमान को बुनना !
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यदि जीवन शान से है जीना,
फर्ज है अपना प्रकृति को बचाना,
अनमोल है जीवन इस धरा पर,
खुदा ने दिया है यह नज़राना।
जीयें उसे कैसे, यह एक सवाल है?
प्रकृति का यह उपहार बेमिसाल है,
हो रहा है दोहन, इसका इतना,
जीवन पर आ पड़ी है कैसी विपदा?
जल जीवन का आधार है,
जल बिन यह जीवन निराधार है,
रोक कर प्रदूषण को,
वातावरण को स्वच्छ बनाना है।
जो वायु जीवन देती है,
उसे युगों तक कायम रखना है
न काटो इन दरख्तों को,
जो छाया तुमको देते हैं।
भरते हैं ये पेट तुम्हारा,
पशुओं का भी पालन करते हैं,
करके ग्रहण ये CO2,
हमारे जीवन को मधुर बनाते हैं।
न उजाड़ो इन वनों को,
जो प्राकृतिक आपदा से बचाते हैं,
रोक कर वर्षा का जल,
भूमि का जल-स्तर बढ़ाते हैं।
आज इन्हें बचाओगे तो,
कल जीवन भी बच जाएगा
दिख रहा है जो भविष्य खतरे में,
खतरे से बाहर आ जाएगा।
लगाकर पेड़ ज्यादा से ज्यादा
हमें इस जमीं को सजाना है
पूज्यनीय है यह प्रकृति,
इस संजीवनी को बचाना है।
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चहकते हुए पड़ोस में
मातम सा छा गया है
महंगाई का ये दानव
एक दम से आ गया है!
मांगी थी फीस उसने
चांटा दिया पिता ने,
स्कूल आज बच्चा
रोता हुआ गया है!
वो भूख से तड़पकर
मजदूर मर रहा है,
सारे जहाँ की रोटी
ये कमबख्त खा गया है!
इस बार मेरी बहना
राखी न भेजना तू ,
ससुराल में बहन को
ये ख़त रुला गया है !!
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हमे ही कुछ कदम ऊठाने होंगे ,

कुछ बदले से तेवर दिखाने होंगे,

ऐ मेरे दोस्तों ज़रा नींद से जागो !
...
कुच्छ कर्तव्य हमें भी निभाने होंगे...

वरना,

ज़मीन बेच देंगे, गगन बेच देंगे,

नदी, नाले, पर्वत, चमन बेच देंगे,

अरे! नौजवानों अभी तुम ना संभले,

तो ये भ्रष्ट नेता वतन बेच देंगे...

जय हिंद वान्दैमातरम भारत माता की जय हो

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