श्री भगवान गीता में बोले-
श्रस्टी रचना के बाद मैंने इस अविनाशी
योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने
अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥4.1॥
श्रस्टी रचना के बाद मैंने इस अविनाशी
योग को सूर्य से कहा था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने
अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा॥4.1॥
हे परन्तप अर्जुन! इस प्रकार परम्परा
से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना, किन्तु उसके बाद वह योग बहुत
काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्तप्राय हो गया॥4.2॥
अर्जुन तू मेरा भक्त और प्रिय सखा है, इसलिए
वही यह पुरातन योग आज मैंने तुझको कहा है क्योंकि यह बड़ा ही उत्तम रहस्य
है अर्थात गुप्त रखने योग्य विषय है॥4.3॥
श्री भगवान बोले- हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो
चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, किन्तु मैं जानता हूँ॥4.5॥
मैं अजन्मा और अविनाशीस्वरूप होते
हुए भी तथा समस्त प्राणियों का ईश्वर होते हुए भी अपनी प्रकृति को अधीन
करके अपनी योगमाया से प्रकट होता हूँ॥4.6॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें