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सोमवार, 27 जून 2011

व्यक्तित्व का दर्पण

! हमारे व्यक्तित्व का दर्पण है व्यवहार !
व्यवहार में व्यक्तित्व की झलक झलकती है, हमारी छवि प्रतिबिंबित होती है. व्यवहार में हमारी सोच, हमारे निजी विचार, विश्वास एवं भावों का मर्म छिपा रहता है. व्यवहार से इन सभी की अभिव्यक्ति होती है. हर व्यक्ति की अपनी एक विशिष्ट छवि होती है और यह छवि हमारे व्यवहार के द्वारा परिलक्षित होती है. बाह्य जगत में व्यवहृत  व्यवहार कुछ नहीं है बल्कि अन्दर में जो कुछ भी है उसकी झलक मात्र है. हम जैसे होते हैं वैसा ही हम व्यवहार करते हैं. होने और झलकने के बीच गहरा सम्बन्ध है जिसे नकारा नहीं जा सकता. यदि हमारा इमेज स्वच्छ, साफ एवं विधेयात्मक है तो हमारी कार्य क्षमता बढ़ जाती है और हमारा व्यवहार शिष्ट एवं शालीन होता है. हम जो कुछ भी करते हैं, उसका गहरा असर औरों पर पड़ता है. सामान्य रूप से ऐसे व्यक्ति को सज्जन एवं सभ्य कहा जाता है.
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देह रहते अहंकार नहीं जाता, और, भाव रहते अहं नहीं
जाता। तब अपने अहं को आदर्श पर छोड़ कर passive होकर जो जितना रह सकता है
वह उतना है निरहंकार एवं वह उतना उदार है।
अपने पर गर्व जितना न किया जाय उतना ही मंगल, और आदर्श पर गर्व जितना किया जाय उतना ही मंगल।
परमपिता ही तुम्हारे अहंकार के विषय हों, और तुम उनमें ही आनंद उपभोग करो !
असत् आदर्श में अपना अहंकार न्यस्त न करो; अन्यथा तुम्हारा अहंकार और भी कठिन होगा।
आदर्श जितना उच्च या उदार हो उतना ही अच्छा है, कारण, जितनी उच्चता या उदारता का आश्रय लोगे, तुम भी उतना ही उच्च या उदार बनोगे।
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यश हमारे जीवन में आने वाली एक प्रेमी के तरह है, जो कभी भी हमारा साथ छोड़ सकती है. पर अपयश हमारे माँ के तरह है, जो दुःख मै हमारा साथ देती है.अपयश हमारे जीवन को एक महत्व पूर्ण शिक्षा प्रदान करती है.
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