टैक्स की अनैतिक नीति
( प्रीतीश नंदी )
हर सरकार को यह अधिकार होता है कि वह अपने नियमों को पुनर्निर्धारित करे, लेकिन जब वे नियम अचानक फजीहत और झांसे का रूप अख्तियार कर लें तो फिर हम दुनिया के निवेशकों से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि वे हमारा सम्मान करेंगे और भारत में पुन: निवेश करने आएंगे?
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वास्तव में लगता है कि पिछले कुछ वर्षों में टैक्स शेल्टर्स के प्रति सरकार के दृष्टिकोण में खासा बदलाव आया है. वर्षों तक ये टैक्स शेल्टर्स हम पर कर का बोझ कम करने के लिए थे, ताकि हम मुश्किल दिनों के लिए पैसा बचा सकें. लेकिन वास्तव में हुआ यह कि हमने करों से जो पैसा बचाया, उसे या तो खर्च कर दिया या उसका पुन: कहीं निवेश कर दिया. इस तरह हमने अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान ही दिया.
अब अचानक इन शेल्टर्स को कर बचाने के माध्यमों के रूप में देखा जाने लगा है और पिछले कुछ वर्षों में उन्हें एक के बाद एक समाप्त किया जा रहा है. इससे भी बुरी स्थिति यह है कि इन शेल्टर्स का उपयोग करने वाले लोगों को इस तरह सताया जा रहा है, जैसे कि वे कर हजम कर जाने वाले लोग हों. व्यक्तियों, कंपनियों, चैरिटियों किसी को भी नहीं बख्शा जा रहा है और चूंकि अब भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है, इसलिए सरकार इसे अपनी नई कर नीति के रूप में प्रचारित कर रही है. कर मुक्त क्षेत्रों की सभी चीजों को संदेहास्पद माना जा रहा है.
सच्चाई यह है कि भारत एक समय इतने भीषण आर्थिक संकट से जूझ रहा था कि उसे विदेशी पूंजी की सख्त दरकार थी. इसीलिए सरकार ने स्वयं निवेशकों को रिझाने के लिए उनके समक्ष मॉरिशस रूट का प्रस्ताव रखा, क्योंकि उसे पता था कि किसी अन्य देश में जाने पर निवेशकों को सबसे अधिक चिंता कर की ही होती है. वे कभी यह नहीं चाहते कि उनकी पूंजी हमेशा के लिए वहां अटकी रह जाए. न ही वे यह चाहते हैं कि उनके मुनाफे का हिस्सा पूंजीलाभ कर की भेंट चढ़ जाए.
वे अपने पैसे का निवेश करने का जोखिम उठाते हैं, लिहाजा वे उसी अनुपात में लाभ भी कमाना चाहते हैं. वे जिन व्यवसायों में निवेश करते हैं, उन्हें भारत में कई तरह के कर चुकाने पड़ते हैं, फिर चाहे वे मुनाफा कमा रहे हों या नहीं. ऐसी परिस्थितियों में वे अपने पूंजीलाभ को एक ऐसी सरकार से क्यों साझा करना चाहेंगे, जो अपने पूंजीपति मित्रों के सिवाय किसी अन्य के प्रति बिजनेस फ्रेंडली नहीं है?
जहां तक मेरी समझ है, अब यह नियम बदलना उपयुक्त नहीं होगा. इसका पहला कारण तो यह है कि यह उन व्यक्तियों के प्रति अन्यायपूर्ण होगा, जिन्होंने यह सोचकर भारत में निवेश किया था कि वे तमाम प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर चुकाने के बावजूद पूंजीलाभ पर कर बचा लेंगे. इसका एक अन्य अर्थ अपने वायदे से मुकरना भी होगा. दूसरा कारण यह कि वैश्विक निवेशक जब किसी देश में निवेश करते हैं और उससे उन्हें मुनाफा होता है तो वे आमतौर पर किसी अन्य व्यवसाय में पुन: निवेश करने के लिए लौटकर आते हैं.
इसलिए यदि हम पैसा ले जा रहे निवेशकों के लिए मुसीबतें पैदा न करें तो पूरी संभावना है कि वे अगली बार अधिक पूंजी निवेश के साथ आएंगे. तीसरा कारण यह है (और जैसा कि हम जानते ही हैं) कि भारत में बिजनेस करना बड़ा कठिन है. इसकी वजह है जटिल नियम-कानून और तंत्र में पैठा भ्रष्टाचार. ऐसे में जब तक हम किसी को टैक्स इंसेंटिव नहीं देंगे और उनके साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार नहीं करेंगे तो कोई यहां क्यों निवेश करना चाहेगा?
यह सच है कि बीते कुछ वर्षों में हमारी विकास दर बहुत अच्छी रही है. पश्चिम में निवेश के अवसर कम हैं. इसीलिए आज भी हमारे यहां इतना पैसा आ रहा है. यदि हम अपने निवेशकों को प्रेरित करेंगे और उनके प्रति विश्वास जताएंगे, यदि हम न केवल मौजूदा टैक्स शेल्टर्स की रक्षा करेंगे, बल्कि नए शेल्टर्स भी सृजित करेंगे तो हम आगामी वर्षो में आर्थिक मोर्चे पर और बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे. आज हर देश निवेशकों को न्योता दे रहा है. कोई भी उन पर इतने नियम-कायदे नहीं लादता और उन पर इतना संदेह नहीं करता, जितना हम करते हैं. हम अधिक से अधिक निवेश को न्योता क्यों नहीं देते, ताकि हमारे देश के युवा, जो दुनिया के सर्वाधिक रचनात्मक उद्यमियों में से हैं, अपने सपनों को पूरा कर सकें? इससे रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर भी सृजित होंगे.
हमारी कर नीति उन लोगों के स्थान पर, जो नियमित रूप से कर चुकाते हैं, उन सैकड़ों-हजारों लोगों पर केंद्रित होनी चाहिए, जो अब भी कर के राडार से बचकर निकलने में कामयाब हो जाते हैं. संक्षेप में हमारा जोर उन लोगों पर होना चाहिए, जो वास्तव में कर चोरी करते हैं, उन पर नहीं, जो पहले ही कर चुका रहे हैं.
भारत में कई किस्म के व्यवसाय हैं, जो कभी कर चुकाने की फिक्र नहीं करते. बड़े शहरों से बाहर निकलें और मध्य भारत में जाकर देखें तो पता चलेगा कि किस तरह कंज्यूमर गुड्स, कारें, ट्रक, फार्म हाउस खरीदकर टैक्स का पैसा खपाया जा रहा है. अवैध खनन और अनधिकृत निर्माण करने वाले, आपराधिक गिरोह चलाने वाले, जनता का पैसा चुराने वाले, घूसखोरी करने वाले, वन्यजीवों को मारने वाले और खूबसूरत हिल स्टेशनों पर अवैध रिजॉर्ट-टाउनशिप बनाकर उन्हें बरबाद कर देने वाले लोगों की संपत्ति का हिसाब लगाएं.
काले धन के सौदागरों, जुए और वेश्यावृत्ति के अड्डे चलाने वालों और नकली दवाइयां बनाने वालों की आमदनी का पता लगाएं. यदि सरकार वास्तव में अपना कर राजस्व बढ़ाना चाहती है तो उसे इन्हें और उन सरकारी अफसरों को आड़े हाथों लेना चाहिए, जो इनकी ढाल बनकर काम करते हैं.
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