कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

तब भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था .

गुजरात में दुग्ध क्रन्ति १९७३ में वी जे कुरियन की अगुवाई में शुरू हुई . तब तक भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था .
गुजराती व्यापारी कई सौ सालों से देश विदेश में व्यापार करते हैं . यह कोई मोदी की दें नही है.

गुजराती किसान पहले भी देश के अन्य किसानों के मुकाबले उन्नत ही थे .

तब मोदी नाम के किसी व्यक्ति को कोई नहीं जानता था .

मोदी का नाम तो गुजरात में मुसलमानों के बड़े जनसंहार के बाद मशहूर हुआ .

अपने ऊपर लगे खून के दाग धोने के लिये मोदी ने पहले से ही विकसित गुजराती किसानों और गुजराती विकास को अपनी कारगुजारी बताना शुरू कर दिया .

यह एक चालाक हरकत है .

गुजरात में वन वन अधिकार क़ानून के बाद आदिवासियों को उन ज़मीनों के पट्टे मिलने चाहिये थे जिन पर वह पहले से खेती कर रहे थे .

लेकिन मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों के आवेदनों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया .

इना ही नहीं उल्टा मोदी ने गुंडा गर्दी कर के आदिवासी किसानों की ज़मीनों को छीनना भी शुरू कर दिया . किसानो की पिटाई करवानी शुरू कर दी गई .

कई अधिकारियों ने बताया कि मोदी ने दो लाख एकड़ ज़मीने बड़े कारखानेदारों को दे दी हैं .

सानंद विश्वविद्यालय को बंद कर के विश्वविद्यलय की ज़मीन टाटा को नैनो कार बनाने के लिये दे दी गई है .
बडौदा अहमदाबाद हाई वे के दोनों तरफ छह किलोमीटर की ज़मीने मोदी ने उद्योगों के लिये रिजर्व कर दी हैं .
गुजरात आज कल बड़े लोगो का पैसे वालो का स्वर्ग बना हुआ है .
न्हें सारे टैक्सों में छूट है . वे जैसा चाहे प्रदूषण फैला सकते हैं . जितना चाहे नदियों को गन्दा कर सकते हैं . जितना चाहे हवा में प्रदूषण फैला सकते हैं .
उनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं के घर पर पुलिस पहुँच जाती है .
गुजरात में मज़दूर अपनी बुरी हालत के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते .

तो अगर आप पैसे वाले हैं तो गुजरात में आइये . मुफ्त की ज़मीन लीजिए .टैक्स मत दीजिए . प्रदुषण फैलाइए . मजदूरों को सताइए . मोदी का गुणगान कर दीजिए और उन्हें खुश कर दीजिए .

अब ये मोदी माडल भाजपा देश में बेचने निकली है .

अगर इस देश के युवा को यही माडल चाहिये जिसमे सारी ज़मीने उद्योगपतियों की हो जाएँ .

जहां सरकार को कल्याणकारी कार्यक्रम के लिये कोई टैक्स भी ना मिले .

जहां ये उद्योगपति हमारी हवा और पानी को गन्दा कर दें .

करोड़ों किसन बेज़मीन होकर शहरों के बाहर गंदी बस्तियों में कीड़े मकोडों की तरह रहने और बेरोजगारी, भूख और बीमारी से मरने को मजबूर हो जायें .

कुछ लोगों के मज़े के लिये पूरे देश को मरने के लिये मजबूर कर देने वाला यह विकास . यह घोर असमानता पैदा करने वाली अर्थव्यवस्था . इस विनाश को अंजाम देने वाली राजनीति हम सबको स्वीकार नही है .

इस सब को स्वीकार करने का अर्थ भगत सिंह, गांधी, मार्क्स, वेद कुरान बाइबिल ग्रन्थ साहब सब को नकारना होगा . क्योंकि इन सब ने तो हमें सबकी समानता,प्रकृति के साथ साहचर्य और मिल कर रहना सिखाया था.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें