कभी-कभी
मैं तुम्हें याद करती हूँ
इसलिए नहीं
कि भाग्य तुम्हारे से सम्मोहित मैं हूँ
बल्कि इसलिए
मैं तुम्हें याद करती हूँ
इसलिए नहीं
कि भाग्य तुम्हारे से सम्मोहित मैं हूँ
बल्कि इसलिए
नहीं मिटा पाई हूँ अब तक
छाप आत्मा से मैं अपनी
छोड़ गया है
जो छोटा-सा मिलन हमारा
छाप आत्मा से मैं अपनी
छोड़ गया है
जो छोटा-सा मिलन हमारा
गुज़रा करती जान-बूझकर
लाल मकां के पास तुम्हारे
बना हुआ है जो गंदली-सी नदी किनारे
मुझे पता है निर्दयता से
धूप-सनी नीरवता प्रिय की
भंग किया करती हूँ
नहीं भले ही हो अब तुम वह
जिसने मेरी इच्छाओंको
अमर किया स्वर्णिम गीतों में
जब शामें होती हैं गीली
और दुबारा मिलन हमेरा
हो उठता है बहुत ज़रूरी
हो उठता है बहुत ज़रूरी
(किन्तु करूँ क्या)
जब निषिद्ध यह
जब निषिद्ध यह
मैं भविष्य पर गुप्त रूप से
मोहन-मंत्र चलाती हूँ
आन्ना अख़्मातवा
------------------------------ ------------------------------ ------------------------------ ----
------------------------------
बहुत बेबस था मन मेरा
पर चाल थी मेरी हल्की
मैं दस्ताना बदल रही थी
घबराहट थी कल की
पर चाल थी मेरी हल्की
मैं दस्ताना बदल रही थी
घबराहट थी कल की
मुझे लगा- सीढ़ियाँ हैं ज़्यादा
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
आ, आजा! मौत है हसीन!
पर सीढ़ी थीं केवल तीन
उधर फुसफुसा रहा था पतझड़
आ, आजा! मौत है हसीन!
मैं चली थी धोखा देने
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को
अपने दुखी, अशांत जीवन को
कहा- तेरे साथ मरूँगी
वारा तुझ पर तन-मन को
यह गीत था अन्तिम क्षण का
देखा मैंने उस घर को
वहाँ शयनकक्ष था रोशन
उस फीके पीले निर्झर को
देखा मैंने उस घर को
वहाँ शयनकक्ष था रोशन
उस फीके पीले निर्झर को
अन्तिम क्षण का गीत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें