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सोमवार, 13 जून 2011

सही नहीं जाती

दग्ध हो गया है मन तेरी तपिश भरी बातों से 
फिर भी तेरी ये चुप्पी मुझसे सही नहीं जाती है 

मौन को कुरेदा तो न जाने कितना गुबार उठेगा 
आँखों में अपनी नमी भी अब झेली नहीं जाती है 

सूख गया है समंदर भी जिसे कभी अश्कों ने भरा था 
सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है

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