दग्ध हो गया है मन तेरी तपिश भरी बातों से फिर भी तेरी ये चुप्पी मुझसे सही नहीं जाती है मौन को कुरेदा तो न जाने कितना गुबार उठेगा आँखों में अपनी नमी भी अब झेली नहीं जाती है सूख गया है समंदर भी जिसे कभी अश्कों ने भरा था सूखी रेत पर अब कोई तहरीर लिखी नहीं जाती है
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