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शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

बाजीराव प्रथम एक महान सैनिक
इतिहास में ४१ लड़ाइयों में विजेता बाजीराव प्रथम (१७००-१७४०) चिर विजेता सेनापति रहे। उनके सैनिक जीवन का मूल्यांकन मराठों के सैनिक इतिहास के परिप्रेक्ष्य में ही करना होगा। शिवाजी (१६३०-१६८०) की मृत्यु के बाद मराठों ने औरंगजेब के विरुद्ध जो दीर्घ (१६२१-१७०७) व भीषण संघर्ष किया, अपने से तिगुनी मुगल सेना को पराजित किया व औरंगजेब महाराष्ट्र में थका-हारा मृत्यु को प्राप्त हुआ (१७०७)। इस संघर्ष में तपे मराठा सेनापतियों से बाजीराव ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सीखा।
अकबर के नवरत्न : तानसे
सगीत सम्राट तानसेन अकबर के अनमोल नवरत्नों में से एक थे। अपनी संगीत कला के रत्न थे। इस कारण उनका बड़ा सम्मान था। संगीत गायन के बिना ‍अकबर का दरबार सूना रहता था। तानसेन के ताऊ बाबा रामदास उच्च कोटि के संगीतकार थे।
'मैंने जीवन भर गरीबों से प्रेम किया'
हृदय को सच्ची और शुद्ध कामना अवश्य पूरी होती है। अपने अनुभव में, मैंने इस कथन को सदा सही पाया हैं। गरीबों की सेवा मेरी हार्दिक कामना रही है और इसने मुझे सदा गरीबों के बीच ला खड़ा किया है और मुझे उनके साथ तादात्म्य स्थापित करने का अवसर दिया है।
'धर्म का लक्ष्य है ईश्वर की प्राप्ति'
'धर्म का लक्ष्य है ईश्वर की प्राप्ति'
बचपन से ही नरेंद्रनाथ को पवित्रता की धुन लगी रहती थी। जब कभी उनका युवकोचित स्वभाव अवांछनीय कर्म की ओर आकृष्ट होता तो कोई अदृश्य शक्ति उन्हें नियंत्रित कर देती। उनकी माताजी ने उन्हें पवित्रता का महत्व समझाया था तथा ब्रह्मचर्य पालन का उपदेश दिया था।
अंधविश्वासी न बनो : स्वामी विवेकानंद

किशोरावस्था में प्रवेश करते हुए नरेन के स्वभाव में अब कुछ विशेष परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे थे। बौद्धिक जीवन की ओर उनका झुकाव बढ़ गया। अब वे इतिहास एवं साहित्य के महत्वपूर्ण ग्रंथों का अध्ययन करने लगे, समाचार पत्र पढ़ने लगे और सार्वजनिक सभाओं में जाने लगे।
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन-2


अपनी माताजी से पौराणिक कथाएँ सुनकर, अन्य हिन्दू बालकों के समान ही नरेंद्र को भी देवी-देवताओं से लगाव हो गया। विशेषकर राम और सीता की वीरतापूर्ण गाथा सुनकर वह इतना आकर्षित हुआ कि वह उनकी मूर्तियाँ लेकर उन्हें फूलों से सजाता और अपनी बालसुलभ रीति से उनकी पूजा करता।
स्वामी विवेकानंद का प्रारंभिक जीवन
स्वामी विवेकानंद ने भारत में हिन्दू धर्म का पुनरुद्धार तथा विदेशों में सनातन सत्यों का प्रचार किया। इस कारण वे प्राच्य एवं पाश्चात्य देशों में सर्वत्र समान रूप से श्रद्धा एवं सम्मान की दृष्टि से देखे जाते हैं। उनका जन्म 12 जनवरी 1863 ई., सोमवार के दिन प्रात:काल सूर्योदय के किंचित् काल बाद 6 बजकर 49 मिनट पर हुआ था।
शिखर की ओर सायना
बैडमिंटन में चीन, कोरिया, इंडोनेशिया और जापान के धुरंधरों के बीच कोई भारतीय इस कदर छा जाएगा, किसी ने सोचा नहीं होगा लेकिन २० वर्षीय सायना नेहवाल औरों की तरह आम खिलाड़ी नहीं हैं। सायना औरों से कहीं अलग, कहीं ज्यादा दमदार, प्रतिभाशाली और आत्मविश्वास से लबरेज ऐसी "खास" खिलाड़ी हैं जो जीत हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं।
अभिषेक के रुपहले पर्दे पर 10 साल
निर्देशक मणिरत्नम और अभिषेक बच्चन फिल्म 'रावण' से हैट्रिक मना रहे हैं। ये मणि की फिल्म 'युवा' ही थी जिसमें लल्लन के किरदार ने अभिषेक के कॅरिअर को रफ्तार दी। अभिषेक इसका अहसान आज तक मानते हैं, मणिरत्नम ने मुझे हर उस मौके पर एक दमदार किरदार दिया जब मुझे इसकी सख्‍त जरूरत थी।

घर में मौनी बाबा बन जाते हैं धोनी

सड़कों पर मोटरसाइकिल लेकर अकेले लंबी ड्राइव पर जाना और अपने बचपन के साथियों के साथ पुराने दिनों की याद ताजा करना उनका प्रमुख शगल है। राँची-टाटा मार्ग पर देवड़ी मंदिर में जाकर मत्था टेकना भी वह कभी नहीं भूलते। इस मंदिर को लेकर उनकी गहरी आस्था है। उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे
उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे

बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है। स्व. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी इसी पावन बंगभूमि से पैदा हुए थे। 6 जुलाई, 1901 को उनका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे।
हँसते-हँसते फाँसी चढ़ गए बांठिया

राजस्थान की राजपूतानी शौर्य भूमि में बीकानेर में शहीद अमरचंद बांठिया का जन्म 1793 में हुआ था। देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा शुरू से ही उनमें था। बाल्यकाल से ही अपने कार्यों से उन्होंने साबित कर दिया था कि देश की आन-बान और शान के लिए कुछ भी कर गुजरना है।

मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी..


देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अँग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर करने वाली अमर वीरांगना, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई महिलाओं को अधिकारसंपन्न बनाने की पक्षधर थीं। लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना में महिलाओं की भर्ती की थी और अपनी सुरक्षा में भी महिला सैनिकों को शामिल किया था।
मैं अंदर से भक्त और बाहर से ज्ञानी-विवेकानंद


शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता से थोड़ा भी विचलन तथा सत्य एवं त्याग के साथ कोई समझौता उनकी सहनशक्ति से परे था। बाकी सब कुछ उन्होंने जगन्माता की इच्छा पर छोड़ दिया था। नरेंद्र उनके चिह्नित शिष्य थे तथा ईश्वर के द्वारा एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए जगत में भेजे गए थे।
स्वामी विवेकानंद के वचन-2

इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जाएगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड़ नहीं है -- बड़े आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं - यही सदा से होता आया है -- एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं।

ऐसे थे परम पूजनीय श्री गुरुजी

गुरुजी बोले स्वाद चाय का नहीं स्नेह का था। यदि उसे न कहते तो उसका दिल टूट जाता और अपना काम दिलों को तोड़ना नहीं जोड़ना है। मित्रों को अपनी भूल समझ में आ गई थी।
स्वामी विवेकानंद के वचन
हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की है। हे विद्वन! डरो मत्; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय है।
गली का खिलाड़ी ऐसे बना क्रिकेटर
दोस्तो, क्रिकेट से संन्यास के बाद भी मुझे इस खेल से इतना लगाव हो गया है कि अब मैं कमेंट्री में भी खूब आनंद लेता हूँ। मुझे भारतीय क्रिकेट टीम के हार जाने पर आपकी तरह दुख होता है पर अच्छा क्रिकेट खेलने वाले की तारीफ करना कमेंटेटर के लिए जरूरी होता है। आपकी तरह मुझे भी अपने देश से बहुत प्यार है।
विवेकानंद की श्रीरामकृष्ण से पहली भेंट

दक्षिणेश्वर में हुई श्रीरामकृष्ण तथा नरेंद्र के बीच पहली भेंट अत्यंत महत्वपूर्ण थी। श्रीरामकृष्ण ने क्षणभर में ही अपने भावी संदेशवाहक को पहचान लिया। नरेंद्रनाथ अपने साथ दक्षिणेश्वर को आए अन्य नवयुवकों से बिल्कुल भिन्न थे।
कोंकणा सेन का बचपन
दोस्तो, मेरा जन्म दिल्ली में हुआ, पर मैं पली-बढ़ी कोलकाता में। हम भाई-बहनों की एक बड़ी गैंग हुआ करती थी जिनमें से कुछ तो बहुत शैतानी करते थे। मेरा नाम शैतानी करने वालों की लिस्ट में ही रहता था। दोपहर में हम अपने परिसर और अपार्टमेंट में खूब खेलते थे और जब भी मौका मिलता था तो चौराहे पर जाकर पुचका और भेलपुरी खाते थे।
सुभद्रा कुमारी चौहान की क्रांति-कथाएँ


छोटे बच्चों को गोद में लिए और उनके हाथ पकड़े सुभद्रा जुलूसों में भूखी-प्यासी शामिल रहतीं। कहीं कुछ मिला तो बच्चों को दे दिया। स्वतंत्रता का जो अलख वह जगा रही थीं, उसमें उनका तन-मन सब कुछ आहूति बन रहा था।
मैं संन्यासी नहीं - महात्मा गाँधी
मुझे संन्यासी कहना गलत है। मेरा जीवन जिन आदर्शों से संचालित है, वे आम आदमियों द्वारा अपनाए जा सकते हैं। मैंने उन्हें धीरे-धीरे विकसित किया है। हर कदम अच्छी तरह सोच-विचार कर और पूरी सावधानी बरतते हुए उठाया गया है।
'अहिंसा की पहेली नहीं सुलझा पाऊँगा'


मेरा मानना है कि मैं बचपन से ही सत्य का पक्षधर रहा हूँ। यह मेरे लिए बड़ा स्वाभाविक था। मेरी प्रार्थनामय खोज ने 'ईश्वर सत्य है' के सामान्य सूत्र के स्थान पर मुझे एक प्रकाशमान सूत्र दिया : 'सत्य ही ईश्वर है'। यह सूत्र एक तरह से मुझे ईश्वर के रूबरू खड़ा कर देता है

'भीषण यातना में भी भगवान साथ हैं'


अभी उस दिन रात में छावनी के सभी लोग एक चीड़ वृक्ष के नीचे सोने के लिए गए थे, जिसके नीचे मैं हर रोज प्रात:काल हिन्दू रीतिरिवाज से बैठकर इन लोगों को उपदेश देता हूँ। हालाँकि मैं भी उन लोगों के साथ गया था - नक्षत्रखचित नभमंडल के नीचे माँ धरित्री की गोद में सोकर अत्यंत आनंद के साथ रात व्यतीत हुई, खासकर मैं तो उसका पूरा पूर आनंद लेता रहा।
अपने बारे में (गाँधीजी)
मैं सोचता हूँ कि वर्तमान जीवन से 'संत' शब्द निकाल दिया जाना चाहिए। यह इतना पवित्र शब्द है कि इसे यूँ ही किसी के साथ जोड़ देना उचित नहीं है। मेरे जैसे आदमी के साथ तो और भी नहीं, जो बस एक साधारण-सा सत्यशोधक होने का दावा करता है, जिसे अपनी सीमाओं और अपनी त्रुटियों का अहसास है और जब-जब उससे गलतियाँ!
भारतीयों के बारे में विवेकानंद की राय

भारतीय जनता के बारे में अपनी अंतरंग जानकारी के आधार पर स्वामी विवेकानंद पूर्णत: आश्वस्त हो गए थे कि राष्ट्र की जीवनधारा नष्ट नहीं हुई है, वरन् अज्ञान एवं निर्धनता के बोझ से दबी हुई है। भारत अब भी ऐसे संतों का सृजन करता रहा है, जिनके आत्मा का संदेश स्वीकार करने को पाश्चात्य जगत ने एक स्वस्थ समाज रूपी रत्नपेटिका का निर्माण तो किया है, परंतु उनके पास रत्न का अभाव है।
दुखियों का दर्द समझो : विवेकानंद
एक अज्ञान संन्यासी के रूप में हिमालय से कन्याकुमारी की यात्रा करते हुए स्वामी विवेकानंद ने जनता की दुख-दुर्दशा का अपनी आँखों से अवलोकन किया था। अमेरिका की सुविधाओं तथा विलासिताओं के बीच सफलता की सीढ़ियों पर उत्तरोत्तर चढ़ते हुए भी, भारतीय जनता के प्रति अपने कर्तव्य का उन्हें सतत स्मरण था। बल्कि इस नये महाद्वीप की संपन्नता ने, अपने लोगों के बारे में उनकी संवेदना को और भी उभारकर रख दिया।
अब्द‍ुल कलाम के प्रेरणा स्त्रोत


नारी जाति ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। मेरे जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो महिलाएँ थीं - एक मेरी माँ और दूसरी प्रसिद्ध गायिका एम.एस.शुभलक्ष्मी। इनकी सरलता, सादगी, कर्मठता, स्नेह मुझे सदा प्रभावित करते रहे।
नारी के साथ दुर्व्यवहार दुर्गति का कारण
स्वामी विवेकानंद ने जब भारतीय नारियों की दुर्दशा और विशेषकर उन दुखद परिस्थितियों की याद आई जिनके कारण उनकी एक बहन आत्महत्या करने को बाध्य हुई थी, तो उनका मन कटुता से भर उठा। बारंबार उनके मन में आता कि हिन्दुओं का अपनी नारी जा‍ति के साथ दुव्यर्वहार ही भारत की दुर्गति का मुख्‍य कारण है।

अमेरिकी महिलाओं को विवेकानंद का पत्र

स्वामी विवेकानंद सामाजिक जीवन की मूर्खता तथा अखबारी हो-हल्ले से ऊब चुके थे। अमेरिकी लोगों में स्वामीजी की सुविधाओं का ध्यान रखने वाले उनके अनेक प्रशंसक एवं भक्त थे, जो अभाव के समय उन्हें धन देते थे तथा उनके निर्देशों पर चलते थे। अमेरिकी महिलाओं के वे विशेष कृतज्ञ थे, और उनकी प्रशंसा करते हुए स्वमी जी ने अपने भारतीय मित्रों को कई पत्र लिखे।
स्वामी विवेकानंद का पत्र


धर्म और विशेषकर हिन्दू धर्म के बारे में अज्ञान, अंधविश्वास तथा विकृत धारणाओं का निराकरण करना - स्वामी विवेकानंद के समक्ष यह कितना कठिन काम था! अत: उनके मन में यदाकदा निराशा का झोंका आ जाना स्वाभाविक ही था। एक ऐसी ही मन:स्थिति में स्वामी जी ने डेट्राएट से 15 मार्च 1894 ई. को शिकागो की हेल-बहनों के नाम एक पत्र में लिखा -
मैं समग्र जगत का हूँ - विवेकानंद
मुझे कायरता से घृणा है। मैं कायरों के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहता। मैं जैसे भारत का हूँ वैसे ही समग्र जगत का भी हूँ। इस विषय को लेकर मनमानी बातें बनाना निरर्थक है। ऐसा कौन सा देश है, जो मुझ पर विशेष अधिकार का दावा करता है? क्या मैं किसी राष्ट्र का क्रीतदास हूँ?
गर्मियों की छुट्‍टियाँ और मेरे चित्र

हमारी गर्मियों की छुट्टियों में हम खूब उछलकूद करते थे। परीक्षा के दिनों से ही मैं छुट्टियों का बेसब्री से इंतजार करने लग जाता था। इंतजार के कई कारण थे। एक तो यह कि छुट्टियाँ आते ही मुझे पढ़ाई से छुटकारा मिल जाता था। खेलने-कूदने से कोई मना नहीं करता था और मुझे चित्र बनाने के मेरे सबसे पसंदीदा काम से भी कोई नहीं रोकता था।
दुनिया को हँसाने वाला चार्ली चैप्लिन


चार्ल्स स्पेन्सर चैप्लिन दुनिया के महानतम अभिनेता थे। न सिर्फ अच्छे अभिनेता बल्कि एक अच्छे इंसान भी। ब्रिटेन में पैदा हुए और अमेरिका में जाकर दुनियाभर में मशहूर हुए चार्ल्स ने घोर गरीबी देखी। माँ-पिता को अलग होते देखा। भूख और बदलते रिश्तेदारों को देखा। घर के लगातार बदलते पते देखे।
माइकल डेल का सफर
माता-पिता ने उसे १५ साल की उम्र में कम्प्यूटर भी लाकर दिया। माइकल की कम्प्यूटर में खासी रुचि थी। और फिर एक ही साल बाद माइकल का बॉयलॉजी से मन उचट गया। माइकल को कम्प्यूटर ज्यादा रोमांचक लगने लगा। माइकल का दिमाग इसमें दौड़ने लगा कि आखिर कम्प्यूटर काम कैसे करता है।
ऐसे थे आइंस्टीन और नील्स
प्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन (1879-1955) जिस पॉलीटेक्नीक में पढ़ते थे, वहाँ गणित के शिक्षक थे- हर्मन मिनोव्स्की। वह आइंस्टीन को ऐसा आलसी व्यक्ति मानते थे जो कक्षा में शायद ही कभी उपस्थित रहता रहा हो। कारण यह था कि आइंस्टीन अलग ही किस्म के छात्र थे और किसी शिक्षक ने उन्हें समझा ही नहीं।
महान योद्धा थे जनरल जोरावर सिंह
जनरल जोरावर सिंह कुशल प्रशासक, इंतजामी, साहसी युद्ध कौशल में निपुण और महान योद्धा थे। ये महाराजा गुलाब सिंह की सेना में बतौर सिपाही भर्ती होकर जनरल पद तक पहुँचे। उनके जन्म दिवस पर जम्मू एण्ड कश्मीर राइफल्स रेजीमेंट सेंटर में आयोजित सैनिक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उक्त बात ब्रिगेडियर सीएम रोड्रिक ने कही।
महात्मा गाँधी के विचार
मेरा मानना है कि मैं बचपन से ही सत्य का पक्षधर रहा हूँ। यह मेरे लिए बड़ा स्वाभाविक था। मेरी प्रार्थनामय खोज ने 'ईश्वर सत्य है' के सामान्य सूत्र के स्थान पर मुझे एक प्रकाशमान सूत्र दिया : 'सत्य ही ईश्वर है'। यह सूत्र एक तरह से मुझे ईश्वर के रूबरू खड़ा कर देता है। मैं अपनी सला के कण-कण में ईश्वर को व्याप्त अनुभव करता हूँ।
बेड़ियाँ तोड़कर मिसाल बनतीं बेटियाँ

कभी बिहार की बेटी भारती ने आदिगुरु शंकराचार्य को विद्वता में पराजित किया था। अपने पति मंडन मिश्र की शास्त्रार्थ में शंकराचार्य से हार के बाद भारती ने शंकराचार्य को चुनौती दी और हराया। बिहार की बीस बेटियों ने भारती की उसी प्रेरणा ज्योति को पथप्रदर्शक बनाया है।
'डायरी पढ़कर मम्मी खूब रोई'

आप जो भी बनना चाहते हैं उसके लिए दिल लगाकर मेहनत करो। आप जो चाहते हो आपको जरूर मिलेगा। दोस्तो, आज आप सभी मुझे भारतीय क्रिकेट टीम में खेलते हुए देखते हो, पर इसके लिए मैंने खूब कड़ी मेहनत की है।
श्रीगुरुजी : पावन संस्मरण
श्रीगुरुजी : पावन संस्मरण


गुरुजी प्रतिदिन औसत 5 पत्रों का लेखन कार्य अंतरदेशीय और लिफाफों से करते थे। बाहर गाँवों से आने वाले सभी पत्र स्वयं ध्यान से पढ़ते और पत्रोत्तर देने में विलंब नहीं करते। किसी के मंगल कार्य की पत्रिका हो अथवा दुखद समाचार, पत्र प्राप्ति की सूचना देना वे कभी नहीं भूले।
स्वामी विवेकानन्द के वचन

सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो– उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है। तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ।
स्मृति ईरानी का बचपन

स्कूल में ज्यादातर स्टूडेंट्स के ग्रुप बने थे, पर मैं अकेली भी खुश रहती थी। मुझे अपनी किताबों की दुनिया अच्छी लगती थी। वैसे स्कूल के दिनों में मैं शांत और आज्ञाकारी स्टूडेंट थी। मैंने कभी क्लास बंक नहीं की और हर विषय पर पूरा ध्यान दिया।
इरफान खान का बचपन

मैं अपने पड़ोस में और चौगान स्टेडियम में जाकर क्रिकेट खेलने में खूब रुचि लेता था और बड़ा होकर क्रिकेटर ही बनना चाहता था। क्रिकेट में मेरी प्रैक्टिस भी खूब अच्छी थी और सीके नायडू ट्रॉफी के लिए मेरा सिलेक्शन भी लगभग हो गया था। पर जब घर पर सभी को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने इसके लिए इजाजत नहीं दी।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर
पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर के मन में प्राणीमात्र के प्रति अथाह करुणा को देखकर उन्हें लोग करुणा देखकर उन्हें लोग करुणा का सागर कहकर बुलाते थे। असहाय प्राणियों के प्रति उनकी करुणा व कर्तव्यपरायणता देखते ही बनती थी। उन दिनों वे कोलकाता के एक समीपवर्ती कस्बे में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त थे।

विद्या बालन का बचपन

मैं मुंबई में पैदा हुई और यहीं बड़ी हुई हूँ। मुंबई के चेंबूर इलाके में मेरा घर है। यह बड़ा ही प्यारा इलाका है। हम दक्षिण भारतीय अय्यर हैं और ज्यादातर दक्षिण भारतीय अय्यर परिवार चेंबूर में रहते हैं। तो दोस्तो, मेरा बचपबन चेंबूर में बीता। बाकी मुंबई की तरह यहाँ जिंदगी ज्यादा तेज नहीं है।
सहृदय और दयालु लिंकन

अब्राहम ने जब अपनी वकालत शुरू की तो वह अपने साथी वकीलों से अलग था। वह अपने यहाँ आने वाले गरीब लोगों का केस बिना फीस लिए लड़ता था। बल्कि कई मौकों पर तो उसने अपनी जेब से मुवक्किलों की मदद भी की।
बेटे के शिक्षक को लिंकन का पत्र
अब्राहम लिंकन ने यह पत्र अपने बेटे के स्कूल प्रिंसिपल को लिखा था। लिंकन ने इसमें वे तमाम बातें लिखी थीं जो वे अपने बेटे को सिखाना चाहते थे। ये बातें सिर्फ किसी एक स्टूडेंट के लिए ही महत्वपूर्ण क्यों हो, सभी के लिए क्यों नहीं।
'मातृभूमि का ऋण चुकाया'
पाकिस्तानी विमान भारतीय क्षेत्रों पर बम बरसाकर क्षतिग्रस्त करने पर तुले हुए थे। 3 सितंबर सन् 1965 को प्रात: छम्ब क्षेत्र में पाकिस्तान के कई अमेरिकी सैबर जेट विमानों को मँडराते देखा गया। स्क्वाड्रन लीडर श्री ट्रैवर कीलर छम्ब क्षेत्र में घुसने वाले पाक विमानों को मार गिराने के लिए नियुक्त थे।
संत पुरंदरदास
जब से भगवान विठोबा को आधार लिया है और धन का आधार छोड़ दिया है, ये हीरे हमारे लिए कंकड़ ही हैं।' और बीने हुए हीरों को वह घूरे पर डाल आई, जहाँ पिछले छह दिन के फेंके गए हीरे चमचमा रहे थे। यह देख व्यासराय के मुख पर मुस्कान फैल गई और सलज्ज कृष्णदेवराय माता सरस्वती के चरणों पर झुक गए।
लाला लाजपतराय
लाला लाजपतराय
लाहौर के ब्रह्म-समाज के अध्यक्ष को जब यह पत्र मिला तो क्षण-भर के लिए तो वह भौचक्का रह गया। ब्रह्म समाज के साधारण युवा सदस्य में इतना साहस कि वह अपना इस्तीफा खुद लाकर उनके हाथ में थमा दे और इस्तीफा भी ऐसा, जिसमें ब्रह्म-समाज की सरासर छीछालेदर की गई हो! उन्होंने युवक लाजपतराय से पूछा, जानते हो, इसका अर्थ क्या होता है?'
बापू के जीवन का दर्पण 'सेवाग्राम आश्रम'
1933 में जेल से रिहा होने के बाद गाँधीजी देशव्यापी हरिजन यात्रा पर निकल गए। स्वराज्य मिला नहीं था इसलिए वे वापस साबरमती लौट नहीं सकते थे। अतः उन्होंने मध्य भारत के एक गाँव को अपना मुख्यालय बनाने का निश्चय किया। 1934 में जमनालाल बजाज एवं अन्य साथियों के आग्रह से वे वर्धा आए और मगनवाड़ी में रहने लगे।
गाय बचेगी तो मनुष्य बचेगा - महात्मा गाँधी
बड़े दु:ख का विषय है कि आज मनुष्य क्रूर होते जा रहा है। करुणा के क्रंदन को ठोकर मारकर पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर संस्कारहीन पीढ़ी बनाने पर हम आमादा हो गए हैं। महात्मा गाँधी की दुहाई देकर देश चलाने वाले उन्हीं के आदर्शों का खून कर रहे हैं। जिन गाँधीजी की तर्ज पर जगह-जगह आंदोलन होते हैं उनमें आम जनता का, जीव दया का हिस्सा कहीं नजर नहीं आता है।
महात्मा गाँधी और पाश्चात्य विद्वान

सुकरात की तरह ज्ञान के साथ ही उनके पास उसी तरह की विनम्रता थी, जैसी सुदामा के पास, जो भगवान कृष्ण के भवन से लौटे तो खाली हाथ थे, मगर धनी होकर। गाँधी जी के लिए सत्य ही साध्य था, सत्य ही सब कुछ था, आज यही सत्य सार्थक है, इसे केवल अहिंसा और विनम्रता से प्राप्त किया जा सकता है, गाँधी जी की शब्दावली में अहिंसा का अर्थ है असीम प्रेम और असीम कष्ट उठाने की क्षमता।
सुभाषचन्द्र बोस : स्वतंत्रता के महानायक

23 जनवरी 1897 का दिन विश्व इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इस दिन स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक सुभाषचन्द्र बोस का जन्म कटक के प्रसिद्ध वकील जानकीनाथ तथा प्रभावतीदेवी के यहाँ हुआ। उनके पिता ने अँगरेजों के दमनचक्र के विरोध में 'रायबहादुर' की उपाधि लौटा दी। इससे सुभाष के मन में अँगरेजों के प्रति कटुता ने घर कर लिया। अब सुभाष अँगरेजों को भारत से खदेड़ने व भारत को स्वतंत्र कराने का आत्मसंकल्प ले, चल पड़े राष्ट्रकर्म की राह पर।
कॉलेज से राजपथ तक
सीनियर विंग में एनसीसी कैडेट बनना मेरी लिए बहुत बड़ी खुशी की बात थी। यूनिफॉर्म पहने हुए परेड में भाग लेना एक रोमांचक काम था। परेड और पढ़ाई के बीच समय जल्दी निकल गया और आ गया एनुअल कैम्प। यह मेरा घर से दूर कैम्प में रहने का पहला अनुभव था। घर के आराम छोड़कर कैम्प के तंबुओं की टफ स्थितियों में रहना वाकई बहुत कुछ सिखाता है।
'संगीत बचपन से मेरे साथ रहा'
कभी मेरी भी संगीत की शिक्षा आपकी जितनी उम्र में ही शुरू हुई थी। मैंने अपनी चाची से संगीत सीखना शुरू किया था। वे मुझे बड़े प्यार से संगीत सिखाती थीं। उनका मानना था कि मैं एक ‍दिन संगीत की दुनिया में जरूर नाम कमाऊँगी।
जब सहायता कर मैं हर्षाया
एक दिन मैं जा रहा था कि मैंने देखा कि एक छोटा बालक नंगे पाँव जेठ माह की धूप में सिर के ऊपर 8.-10 किलो वजनी गठरी लेकर जा रहा था। मैंने रोक कर पूछा कि भैया तुम नंगे पाँव कहाँ जा रहे हो और इस गठरी में क्या है तो उत्तर मिला कि माँ बीमार है पिता हैं नहीं।
कल्पना के सपनों की ऊँची उड़ान
कल्पना चावला की इस दूसरी सफल यात्रा से लौटने का इंतजार था पूरे राष्ट्र को। सभी आशा संजोए बैठे थे कि भारत की बेटी कब इस धरती पर अपने कदम रखेगी। लेकिन ईश्वर को कुछ और ही स्वीकार था। सूचना प्राप्त हुई कि धरती की ओर लौट रहा नासा का कोलंबिया यान पृथ्वी से कुछेक किलोमीटर की दूरी पर हवा में टुकड़े-टुकड़े हो गया।
प्रदूषण के युद्ध में डटी नन्ही योद्धा
बच्चो! वह भी आपकी तरह ही छोटी है मात्र दस वर्ष की। अभी कक्षा 6 में पढ़ रही है लेकिन राम सेतु के निर्माण में योगदान देने वाली गिलहरी की तरह सतत् जुटी हुई है। उस बड़े काम में जिसके लिए चिंतित होकर जुटा हुआ है सारा संसार। जी हा! वह कार्य है पर्यावरण संरक्षण का।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
विद्यालय में पढ़ते समय सुभाष की आयु मात्र 5 वर्ष की थी कि उनके स्वभाव में अजीब परिवर्तन आने लगा। यद्यपि सुभाष पढ़ने लिखने में तेज थे किंतु शाला के अन्य छात्रों से वे हमेशा अलग-अलग रहते थे। जिस समय शाला के सभी बच्चे खेलकूद का आनंद उठाते उस समय सुभाष कुछ सोच-विचार में मग्न होकर गंभीर मुद्रा बनाए अकेले बैठे रहते थे।
गाना गाऊँ तो कौआ भी बेहोश हो जाए
एक खास बात यह भी है कि बचपन में जब कभी मैं गुस्सा होता था तो तुरंत काँच में जाकर देखता था कि गुस्सा होने पर मैं कैसा दिखाई देता हूँ। यह मुझे भी नहीं मालूम था कि बचपन की इन बातों का फायदा आगे चलकर होगा।
दूसरों के लिए आनंद की सीढ़ी बनाओ
तुझे ध्यान मिला था तो उससे दूसरों का ध्यान बढ़ाना चाहिए था पर तू तो मिटाने लगा। दूसरों की श्रद्धा स्थिर करने के बजाय तू तो उनकी श्रद्धा अस्थिर करने लगा। ध्यान को ऊँचे उठने का सहारा बनाना चाहिए था। तू तो उल्टा करके ध्यान व्‍यर्थ कर रहा है।
अद्भुत प्रतिभा के धनी सत्येंद्रनाथ बोस


बात हिंदू स्कूल, कोलकाता की है। गणित के सुप्रसिद्ध अध्यापक उपेन्द्र बक्शी, टेस्ट परीक्षा की कापियाँ जाँचकर उन्हें छात्रों को दे रहे थे। जब सत्येन्द्रनाथ बोस की कॉपी दी तो उन्होंने कहा कि इस छात्र को सौ में से एक सौ दस अंक मिले हैं। यह आश्चर्यजनक घटना थी और शायद परीक्षा के नियमों के विरूद्ध भी।
दृष्टिहीनों को ज्योति देने वाले लुई ब्रेल
दृष्टिहीनों को पढ़ने-लिखने के योग्य बनाया फ्रांस के लुई ब्रेल ने, जो स्वयं एक दृष्टिहीन थे। सामान्य बच्चे या तो रोमन लिपि में पढ़ते हैं या देवनागरी लिपि में, लेकिन दृष्टिहीन बच्चों के पढ़ने के लिए लुई ब्रेल ने अलग लिपि विकसित की और उसे ब्रेल लिपि नाम मिला। झुक नहीं सकते
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते। सत्य का संघर्ष सत्ता से, न्याय लड़ता निरंकुशता से, अँधेरे ने दी चुनौती है, किरण अंतिम अस्त होती है।

ऊँचे पहाड़ पर, पेड़ नहीं लगते, पौधे नहीं उगते, न घास ही जमती है।
पड़ोसी से
एक नहीं, दो नहीं, करो बीसों समझौते पर स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा। अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता ...
गीत नहीं गाता हूँ
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं, टूटता तिलस्म, आज सच से भय खाता हूँ। गीत नहीं गाता हूँ।
जंग न होने देंगे
हम जंग न होने देंगे! विश्व शांति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे! कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी, खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी ...
अटलजी का जीवन परिचय
अटलजी का कवि रूप भी शिखर को स्पर्श करता है। सन् 1939 से लेकर अद्यावधि उनकी रचनाएँ अपनी ताजगी के साथ टाटक सामग्री परोसती आ रही है। उनका कवि युगानुकूल काव्य-रचना करता आ रहा है। वे एक साथ छंदकार, गीतकार, छंदमुक्त रचनाकार तथा व्यंग्यकार हैं।
हर समस्या का हल मम्मी-पापा : अनिल
मुंबइया भाषा मुझे शुरू से ही अच्छी लगती थी और इ‍सलिए फिल्मों में मेरे ज्यादातर रोल और डायलॉग भी इसी तरह के होते हैं। आप जहाँ रहते हैं वहाँ की भाषा आपको आना ही चाहिए और उस भाषा के शब्दों के साथ आपकी दोस्ती होना चाहिए। तभी तो आप अच्छे एक्टर बनोगे।
पटेल और शास्त्री जी के प्रेरक प्रसंग
सरदार पटेल वास्तव में अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदार थे। उनके इस गुण का दर्शन हमें सन् 1909 की इस घटना से लगता है। वे कोर्ट में केस लड़ रहे थे, उस समय उन्हें अपनी पत्नी की मृत्यु का तार मिला।
वर छत्रसाल
बुंदेलखंड के शिवाजी के नाम से प्रख्यात छत्रसाल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत 1706 विक्रमी तदनुसार दिनांक 17 जून, 1648 ईस्वी को एक पहाड़ी ग्राम में हुआ था। इस बहादुर वीर बालक की माताजी का नाम लालकुँवरि था और पिता का नाम था चम्पतराय।
मेरा बचपन : अन्नू मलिक
मेरी पैदाइश मुंबई की है और मेरा बचपन भी वहीं बीता। स्कूल के दिनों में मैं बहुत शैतान हुआ करता था। बचपन में मुझे मराठी की कविताएँ याद रखने में बहुत दिक्कत होती थी और इसलिए मैं उन्हें गाकर याद
जब मैंने पहली कविता लिखी
स्कूलों में तब प्रार्थना, ड्रिल, खेलकूद और बागवानी के पीरियड अनिवार्य होते थे। लेकिन साथ ही हमारे स्कूल में हर माह एक भाषण प्रतियोगिता भी होती थी। यह बात सन 1940 की है। मेरे कक्षा अध्यापक श्री भैरवलाल चतुर्वेदी थे। उनका स्वभाव तीखा और मनोबल मजबूत था।
वेंकी को रुचि ने दिलाया नोबेल
जिस उम्र में बच्चों के करियर माता-पिता तय करते हैं उस उम्र में ही वेंकी ने तय कर लिया था कि उनकी रुचि क्या है और उन्हें किस दिशा में आगे बढ़ना है।
मूल चाणक्य नीति
आचार्य चाणक्य एक ऐसी महान विभूति थे, जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चाणक्य कुशल राजनीतिज्ञ, चतुर कूटनीतिज्ञ, प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में भी विश्वविख्‍यात हुए।
जूही चावला का जन्मदिन
जूही चावला का जन्मदिन
आप दिन में कितनी बार मुस्कुराते हो। मैं तो बहुत मुस्कुराती हूँ। मुस्कुराने से परेशानी कम हो जाती है। टेंशन नहीं रहता और आपसे मिलने वालों की टेंशन भी कम हो जाती है। मेरी फिल्मों में भी तो आप मुझे खूब हँसता हुआ देखते होंगे।
विपिनचंद्र पाल का जन्मदिवस
स्वतंत्रता आंदोलन की बुनियाद तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व बेहतरीन वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है।
बचपन में सारे नाटक करो-नंदिता
पर हर आदमी अपने आप में अलग है। सोचो, दुनिया में सारी लड़कियाँ ऐश्वर्या राय जैसी दिखती तो क्या होता? दुनिया में एक ऐश्वर्या राय होना चाहिए, एक बिपाशा बसु होना चाहिए। एक मेधा पाटकर होना चाहिए और फिर कोई नंदिता दास भी होना चाहिए।
मार्क ट्वेन - शरारती उपन्‍यासकार
अमेरिका की मिसिसीपी नदी के तट पर बसा हेनीबल गाँव। सूर्योदय होते ही लोग अपने-अपने काम में जुट गए। गलियों में बच्चों का शोर गूँज उठा। अचानक एक सीटी की आवाज ने सबको चौंका दिया। बच्चे नदी की ओर भागे। उस दिन हेनीबल गाँव के नदी तट पर एक स्टीमर आया था। सब लोग आश्चर्य और उत्सुकता से उसे देख रहे थे। विशेष रूप से बच्चे। इन्हीं बच्चों में एक का नाम था-सैमुएल क्लीमेंस।
अब्राहम लिंकन के दो किस्से
स्प्रिंगफील्ड में एक बार अब्राहम लिंकन कहीं जा रहे थे। तभी पीछे से एक व्यक्ति ने बहुत तेज गाड़ी चलाते हुए उन्हें ओवरटेक किया और जाने लगा। लिंकन ने उसे आवाज देकर रोका और कहा- क्या आप मेरी मदद करेंगे। उस व्यक्ति ने कहा- बताइए क्या काम है। लिंकन ने कहा कि क्या आप यह मेरा ओवर कोट शहर तक लेकर चलेंगे? उस अपरिचित ने कहा कि हाँ क्यों नहीं, बल्कि खुशी से।
मेरा बचपन : दिव्या दत्ता
दोस्तो आज मैं आपसे इस बारे में बात करूँगी कि मेरा बचपन किस तरह का रहा। तो सबसे पहले अमृतसर शहर पर आते हैं, यहीं मेरा जन्म हुआ। इसके बाद मेरे बचपन के दिन लुधियाना में बीते। मैं घर में सबसे बड़ी थी पर खूब इधर-उधर मस्ती किया करती थी।
रवींद्रनाथ ठाकुर का ऐतिहासिक पत्र
तुम्हारी अपनी प्रतिभा तुम्हारी रक्षा करे। दूसरे धर्म को ग्रहण करने की अपेक्षा अपने धर्म की रक्षा में मृत्यु वरण करना ही श्रेयस्कर है - यह परम सत्य है। इसे अपने हृदय में बैठा लो। बीच-बीच में पत्र लिखकर मुझे आनंदित करते रहना। अगले वर्ष तुम नवीन तेज, नवीन बल से भारत की संतान होने का व्रत ग्रहण करो और इस व्रत को प्राणों से भी बड़ा मानकर मृत्युपर्यन्त पालन करो।
निज प्रभुमय दे‍खहिं जगत

मैंने अपने चारों तरफ देखा, तो मुझे प्रभु रामचंद्रजी दिखाई दिए। मैंने सोचा कि आप लोगों को उन्होंने चोरी करते देख लिया है और चोरी करना पाप है, इसलिए वे जरूर दंड देंगे, इसलिए आप लोगों को सावधान करना उचित समझा
तो मैं मार्शल आर्ट ट्रेनर ही होता-अक्षय
मुझे अपने बचपन के प्यारे दिन बड़े याद आते हैं। मेरा जन्म हुआ है पंजाब के अमृतसर में। मेरा नाम बड़े प्यार से राजीव रखा गया था। पिताजी हरिओम भाटिया सरकारी नौकरी में थे। इसके बाद हम दिल्ली आकर रहने लगे। दिल्ली के चाँदनी चौक इलाके में ही मेरा बचपन बीता है।
एक भले शिक्षक का भला विद्यार्थ
कुछ लोग गाँधीजी को अपने काफी पास अनुभव करते हैं। मैसूर के ऊँचाई से गिरने वाले एक जलप्रपात के बारे में गाँधीजी ने कहा था यह तो कुछ नहीं है। वे प्रकृति का जलप्रपात (वर्षा) देखते हैं जो ठेठ आसमान से गिरता है। यह बात गुरुजी के मन में घर कर गई।
शिक्षक दिवस : सर्वपल्ली राधाकृष्णन
सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने।
प्रसिद्ध साहित्यकार अर्नेस्ट की कहानी


थोड़ी दूर उत्साह में चलने के बाद वे थक जाते हैं और फिर माँ उन्हें गोदी में उठा लेती है। यह माँ हँस भी जब अपने बच्चों को लेकर निकली तो थोड़ी दूर के बाद वे थक गए और फिर माँ के पँखों पर सवार हो गए।
प्रियंका चोपड़ा का बचपन
प्रियंका चोपड़ा का बचपन

मेरे पिता चूँकि आर्मी में डॉक्टर थे इसलिए मेरी पढ़ाई आर्मी स्कूलों में हुई। जीवन में अनुशासन का क्या महत्व है यह मैंने स्कूल और अपने पापा से ही सीखा है। अगर आप हर काम समय पर करते हैं तो उसका बहुत फायदा होता है।
राजीव के सपनों को लगे पर

आने वाले युग का पूर्वानुमान लगाना और उसके मुताबिक पग-पग आगे बढ़ना। एक युगदृष्टा यही करता है। राजीव गाँधी भी एक युगदृष्टा थे। उन्होंने अर्थव्यवस्था को जंग खाए संरक्षण की बेड़ियों से स्वतंत्र कराने और कम्प्यूटर के जरिये करवट लेते संसार को साधने का सपना देखा था।
अपराजेय सेनानी बाजीराव (प्रथम)
बच्चो, क्या आप जानते हैं वीर शिवाजी जैसे ही शूर एक और मराठा-वीर इतिहास पुरुष को? भारत का इतिहास जिसके तेज से तेजस्वी हो गया उस महापुरुष का नाम था बाजीराव पेशवा (प्रथम)। बाजी का अर्थ होता है वीर, पराक्रम करने वाला। अपने वीरता भरे कार्यों से इस योद्धा ने अपने नाम को सार्थक कर दिया।

ऐसे मि‍ला बच्‍चों को हैरी पॉटर...
सालभर बाद लंदन के एक छोटे से पब्लिशिंग हाउस ब्लूम्सबरी के एडीटर ने कहा कि वह यह नॉवेल छापने को तैयार है। इसके पीछे एलिस न्यूटन नाम के छोटे बच्चे की महत्वपूर्ण भूमिका थी। एलिस ब्लूम्सबरी के चेअरमैन का आठ साल का बेटा था। चैअरमेन ने जब पहला चेप्टर अपने बेटे को पढ़ने को दिया तो उसने झटपट पढ़ डाला और उत्सुकता से दूसरा भाग माँगा। एलिस ने ही यह विश्वास दिया कि यह नॉवेल चल सकता है।
जादू कभी भी हो सकता है...
1990 ही वह साल था जब जादू जो के दिमाग में कौंधा। जो एक बार मेनचेस्टर से लंदन आ रही थी और ट्रेन चार घंटे लेट थी। कुछ सोचते-सोचते जो के दिमाग में एक जादुई कहानी आई। हैरी का कैरेक्टर सूझा और फिर अपने फ्लैट तक पहुँचते-पहुँचते तो एक के बाद एक घटनाएँ दिमाग से बाहर आने लगी।

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