गुजरात में दुग्ध क्रन्ति १९७३ में वी जे कुरियन की अगुवाई में शुरू हुई . तब तक भाजपा का जन्म भी नहीं हुआ था .
गुजराती व्यापारी कई सौ सालों से देश विदेश में व्यापार करते हैं . यह कोई मोदी की दें नही है.
गुजराती किसान पहले भी देश के अन्य किसानों के मुकाबले उन्नत ही थे .
तब मोदी नाम के किसी व्यक्ति को कोई नहीं जानता था .
मोदी का नाम तो गुजरात में मुसलमानों के बड़े जनसंहार के बाद मशहूर हुआ .
अपने ऊपर लगे खून के दाग धोने के लिये मोदी ने पहले से ही विकसित गुजराती
किसानों और गुजराती विकास को अपनी कारगुजारी बताना शुरू कर दिया .
यह एक चालाक हरकत है .
गुजरात में वन वन अधिकार क़ानून के बाद आदिवासियों को उन ज़मीनों के पट्टे मिलने चाहिये थे जिन पर वह पहले से खेती कर रहे थे .
लेकिन मोदी सरकार ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों के आवेदनों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया .
इना ही नहीं उल्टा मोदी ने गुंडा गर्दी कर के आदिवासी किसानों की ज़मीनों
को छीनना भी शुरू कर दिया . किसानो की पिटाई करवानी शुरू कर दी गई .
कई अधिकारियों ने बताया कि मोदी ने दो लाख एकड़ ज़मीने बड़े कारखानेदारों को दे दी हैं .
सानंद विश्वविद्यालय को बंद कर के विश्वविद्यलय की ज़मीन टाटा को नैनो कार बनाने के लिये दे दी गई है .बडौदा अहमदाबाद हाई वे के दोनों तरफ छह किलोमीटर की ज़मीने मोदी ने उद्योगों के लिये रिजर्व कर दी हैं .
गुजरात आज कल बड़े लोगो का पैसे वालो का स्वर्ग बना हुआ है . न्हें सारे टैक्सों में छूट है . वे जैसा चाहे प्रदूषण फैला सकते हैं .
जितना चाहे नदियों को गन्दा कर सकते हैं . जितना चाहे हवा में प्रदूषण फैला
सकते हैं .
उनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाले कार्यकर्ताओं के घर पर पुलिस पहुँच जाती है .
गुजरात में मज़दूर अपनी बुरी हालत के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकते .
तो अगर आप पैसे वाले हैं तो गुजरात में आइये . मुफ्त की ज़मीन लीजिए
.टैक्स मत दीजिए . प्रदुषण फैलाइए . मजदूरों को सताइए . मोदी का गुणगान कर
दीजिए और उन्हें खुश कर दीजिए .
अब ये मोदी माडल भाजपा देश में बेचने निकली है .
अगर इस देश के युवा को यही माडल चाहिये जिसमे सारी ज़मीने उद्योगपतियों की हो जाएँ .
जहां सरकार को कल्याणकारी कार्यक्रम के लिये कोई टैक्स भी ना मिले .
जहां ये उद्योगपति हमारी हवा और पानी को गन्दा कर दें .
करोड़ों किसन बेज़मीन होकर शहरों के बाहर गंदी बस्तियों में कीड़े मकोडों
की तरह रहने और बेरोजगारी, भूख और बीमारी से मरने को मजबूर हो जायें .
कुछ लोगों के मज़े के लिये पूरे देश को मरने के लिये मजबूर कर देने वाला
यह विकास . यह घोर असमानता पैदा करने वाली अर्थव्यवस्था . इस विनाश को
अंजाम देने वाली राजनीति हम सबको स्वीकार नही है .
इस सब को
स्वीकार करने का अर्थ भगत सिंह, गांधी, मार्क्स, वेद कुरान बाइबिल ग्रन्थ
साहब सब को नकारना होगा . क्योंकि इन सब ने तो हमें सबकी समानता,प्रकृति के
साथ साहचर्य और मिल कर रहना सिखाया था.
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हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है.
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शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013
गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011
आखिर संजीव भट्ट क्या है ?
मित्रों कांग्रेस और विदेशी ताकतों के फेके टुकड़े पर पलने वाली मिडिया आखिर संजीव भट्ट के बारे मे इस देश के सामने सिर्फ आधी सच्चाई ही क्यों दिखा रही है ?
असल मे संजीव भट्ट एक “विसिल ब्लोव्वर ” नहीं बल्कि कांग्रेस के हाथो खेलने वाले एक “खिलौना ” भर है .. जैसे कोई बच्चा किसी खिलौने से सिर्फ कुछ दिन खेलकर उसे कूड़ेदान मे फेक देता है ठीक वही हाल कांग्रेस संजीव भट्ट का भी करने वाली है .. एक बार अमर सिंह से पूछ लो कांग्रेस क्या है ?
लेकिन मीडिया जिस तरह से संजीव भट्ट को एक “नायक ” दिखा रही है वो एक झूठ है .
१- जब ये जनाब १९९६ मे बनासकाठा के एसपी थे तब इन्होने सिपाही पद की भर्ती मे बड़ा घोटाला किया था . इनके खिलाफ बड़े गंभीर आरोप लगे ..इन्होने भर्ती की पूरी प्रक्रिया को नकार दिया था और ना ही उमीदवारों के रिकार्ड रखे थे .
असल मे संजीव भट्ट एक “विसिल ब्लोव्वर ” नहीं बल्कि कांग्रेस के हाथो खेलने वाले एक “खिलौना ” भर है .. जैसे कोई बच्चा किसी खिलौने से सिर्फ कुछ दिन खेलकर उसे कूड़ेदान मे फेक देता है ठीक वही हाल कांग्रेस संजीव भट्ट का भी करने वाली है .. एक बार अमर सिंह से पूछ लो कांग्रेस क्या है ?
लेकिन मीडिया जिस तरह से संजीव भट्ट को एक “नायक ” दिखा रही है वो एक झूठ है .
१- जब ये जनाब १९९६ मे बनासकाठा के एसपी थे तब इन्होने सिपाही पद की भर्ती मे बड़ा घोटाला किया था . इनके खिलाफ बड़े गंभीर आरोप लगे ..इन्होने भर्ती की पूरी प्रक्रिया को नकार दिया था और ना ही उमीदवारों के रिकार्ड रखे थे .
भारत माँ की आरती
बिखरी ताकत जुटा देश की, फिर संवार दे छटा देश की।
भारत माता हमको आज पुकारती, चलो उतारे आरती॥
आज अनेकों प्रान्त जल रहे, अपराधी दुर्दान्त पल रहे।
घोर अराजकता हमको ललकारती, चलो उतारें आरती॥
चकाचौंध में भौतिकता की, काया गिर रही नैतिकता की।
प्रगतिशीलता संस्कृति को ललकारती, चलो उतारें आरती॥
केशव ने जो मार्ग दिखाया, मधुकर ने चलकर बतलाया।
मातृभूमि उस पथ पर बाट निहारती, चलो उतारें आरती॥
सब आपस के भेद भुला दें, हृदय हृदय के तार मिला दें।
विश्व मंच पर शोभित हो माँ भारती, चलो उतारें आरती॥
भारत माता हमको आज पुकारती, चलो उतारे आरती॥
आज अनेकों प्रान्त जल रहे, अपराधी दुर्दान्त पल रहे।
घोर अराजकता हमको ललकारती, चलो उतारें आरती॥
चकाचौंध में भौतिकता की, काया गिर रही नैतिकता की।
प्रगतिशीलता संस्कृति को ललकारती, चलो उतारें आरती॥
केशव ने जो मार्ग दिखाया, मधुकर ने चलकर बतलाया।
मातृभूमि उस पथ पर बाट निहारती, चलो उतारें आरती॥
सब आपस के भेद भुला दें, हृदय हृदय के तार मिला दें।
विश्व मंच पर शोभित हो माँ भारती, चलो उतारें आरती॥
अच्छे मकसद के साथ एकतरफा और अतार्किक....
जन लोकपाल बिल को लेकर जारी सिविल सोसाइटी की लड़ाई अपने अच्छे मकसद के साथ-साथ अन्ना हजारे के एकतरफा और अतार्किक फैसलों के लिए भी चर्चा में रही है। लेकिन इधर कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं जिनसे टीम अन्ना की सीमाएं कुछ ज्यादा ही उजागर हो गई हैं। टीम अन्ना यानी आंदोलन की 22 सदस्यीय कोर कमेटी के दो सदस्यों, गांधीवादी संगठक वी. पी. राजगोपाल और पर्यावरण कार्यकर्ता राजेंद सिंह के इस्तीफे से इसमें सतह के नीचे मौजूद गहरी बेचैनी का अंदाजा मिलता है।
रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के वक्त टीम से स्वामी अग्निवेश की दूरी भी इसके फैसलों के अलोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर ही बननी शुरू हुई थी, जिसका अंत एक साजिशाना स्टिंग ऑपरेशन में हुआ। जस्टिस संतोष हेगड़े और मेधा पाटेकर की कांग्रेस समर्थक छवि कभी नहीं रही, लेकिन टीम अन्ना के कांग्रेस हराओ अभियान पर वे भी खुलकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं।
रामलीला मैदान में अन्ना के अनशन के वक्त टीम से स्वामी अग्निवेश की दूरी भी इसके फैसलों के अलोकतांत्रिक स्वरूप को लेकर ही बननी शुरू हुई थी, जिसका अंत एक साजिशाना स्टिंग ऑपरेशन में हुआ। जस्टिस संतोष हेगड़े और मेधा पाटेकर की कांग्रेस समर्थक छवि कभी नहीं रही, लेकिन टीम अन्ना के कांग्रेस हराओ अभियान पर वे भी खुलकर अपनी नाखुशी जाहिर कर चुके हैं।
शुक्रवार, 23 सितंबर 2011
ये कैसा वक्त है ?
ये कैसा वक्त है ?
न जज्बा है,न प्यार,न अहसास दिलों में
हां,मकान आलीशान हैं,ये कैसा वक्त है ?
फरिश्ते भी हैं यहां,शैतान भी मिले
मिलता नहीं इंसान है,ये कैसा वक्त है ?
मुल्क के हैं रहनुमा,पर चेहरे हैं दागदार
भूखा मरे किसान,ये कैसा वक्त है करोडों में बिक रहे हैं कौडियों के लोग
न धर्म,न ईमान है,ये कैसा वक्त है ?
ये कैसा वक्त है ?
न जज्बा है,न प्यार,न अहसास दिलों में
हां,मकान आलीशान हैं,ये कैसा वक्त है ?
फरिश्ते भी हैं यहां,शैतान भी मिले
मिलता नहीं इंसान है,ये कैसा वक्त है ?
मुल्क के हैं रहनुमा,पर चेहरे हैं दागदार
भूखा मरे किसान,ये कैसा वक्त है करोडों में बिक रहे हैं कौडियों के लोग
न धर्म,न ईमान है,ये कैसा वक्त है ?
ये कैसा वक्त है ?
शनिवार, 17 सितंबर 2011
हिंदी मेरी जान
हिंदी
मेरी जान है
यह हमारी
राष्ट्र भाषा
मेरे देश की शान है
... ... रहते हो कहीं भी
हमारी
यही पहचान है
है देश की
प्राणमयी भाषा
यही
हमारी आन है
अग्रसर है
विश्वभाषा बनने को
यही हमारा
मान है
वाहक ये संस्कृत की
दर्पण ये साहित्य समाज की
यही हमारा अभिमान है
तन-मन प्राणों से प्यारी
हम सबका सम्मान है
मेरी जान है
यह हमारी
राष्ट्र भाषा
मेरे देश की शान है
... ... रहते हो कहीं भी
हमारी
यही पहचान है
है देश की
प्राणमयी भाषा
यही
हमारी आन है
अग्रसर है
विश्वभाषा बनने को
यही हमारा
मान है
वाहक ये संस्कृत की
दर्पण ये साहित्य समाज की
यही हमारा अभिमान है
तन-मन प्राणों से प्यारी
हम सबका सम्मान है
१४ सितम्बर हिंदी दिवस पर आप सभी को बधाई और शुभकामनाये
वन्देमातरम
जय हिंद जय भारत
वन्देमातरम
जय हिंद जय भारत
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निज भाषा का नहीं गर्व जिसे ,
क्या ? प्रेम देश से होगा उसे ,
वही वीर देश का प्यारा है,
हिन्दी ही जिसका नारा है ll "
क्या ? प्रेम देश से होगा उसे ,
वही वीर देश का प्यारा है,
हिन्दी ही जिसका नारा है ll "
'हिन्दी दिवस' (१४ सितम्बर) की
हार्दिक शुभकामनाये !!
हार्दिक शुभकामनाये !!
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शान से बोले हिन्दी
किसी भी भाषा को सीसना कोई बुरी बात नही है लेकिन अपनी भाषा बोलने से आपका व्यक्तित्व कमतर आँका जाएगा....
हिन्दी आपकी भाषा है और इसका बेहिचक ईस्तेमाल किया जाना चाहिए । बजाऐ अधकचरी अंग्रेजी या न समझ मे आने वाली बात अग्रेजी मे कहने के अपनी भाषा मे यदि अपनी बात की जाऐ तो प्रभाव भी ज्याद पड़ेगा और सुनने वाले को समझ भी जल्दी आएगी
सौ.नवदुनिया
किसी भी भाषा को सीसना कोई बुरी बात नही है लेकिन अपनी भाषा बोलने से आपका व्यक्तित्व कमतर आँका जाएगा....
हिन्दी आपकी भाषा है और इसका बेहिचक ईस्तेमाल किया जाना चाहिए । बजाऐ अधकचरी अंग्रेजी या न समझ मे आने वाली बात अग्रेजी मे कहने के अपनी भाषा मे यदि अपनी बात की जाऐ तो प्रभाव भी ज्याद पड़ेगा और सुनने वाले को समझ भी जल्दी आएगी
सौ.नवदुनिया
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कोई भी देश सच्चे
अर्थोँ मे
तब तक स्वतत्रं नहीँ है जब तक वह
अपनी भाषा मेँ नहीँ बोलता।
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।
"वन्दे - मातरम"
अर्थोँ मे
तब तक स्वतत्रं नहीँ है जब तक वह
अपनी भाषा मेँ नहीँ बोलता।
राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूँगा है।
"वन्दे - मातरम"
जन गण मन की कहानी
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